सरकार बहादुर चाहती है कि खेती का बाजार पूंजीपतियों के हाथ में हो। वो पूंजीपति, वो पूँजीपति जो देश के बैंक लूट कर विदेश भाग जाते है। मौजूदा सरकार सपना देख रही है कि लुटेरे पूंजीपति ईमानदारी से देश चलाएंगे। इसी सपने के तहत हवाई अड्डे, रेलवे स्टेशन, और कई राष्ट्रीय कंपनियां देश के चंद अमीरों के हाथों में सौंपी जा रही हैं।
किसान आज जो मांग रहे हैं, उसमें नया कुछ नहीं है। ये मांग बरसों पुरानी है। नया सिर्फ इतना है कि मौजूदा सरकार ने नए कानून बनाकर किसानों की मुसीबत और बढ़ाने का इंतजाम कर दिया है। इसने फसलों की उपज बेचने की सुलभ व्यवस्था करने, फसलों के उचित मूल्य दिलवाने, खेती से घाटे को कम करने की जगह उसे पूंजीपतियों के हाथ बेचने का कानून बना डाला। मोदी सरकार जिस कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020 के तहत एक देश, एक कृषि मार्केट बनाने की बात कह रही है उसको उन्ही की पार्टी द्वारा शासित दो राज्यों के मुख्यमंत्री नही मान रहे है। किसानों के हित के लिए इतना अध्ययन किया गया है इन बिलों में।
मौजूदा सरकार सत्ता में ये कह कर आई थी कि 70 साल में जो गड़बड़ी हुई है, उसे ठीक करेंगे। लेकिन इनसे ठीक कुछ नहीं किया, सिर्फ बिगाड़ा जैसे मनमोहन सरकार ने जनता के हाथ में आरटीआई का अधिकार दिया था, तो इन्होंने उस कानून को ही कमजोर कर दिया।
जैसे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले छोटे और मझौले उद्योगों को नोटबंदी के जरिये ढहा दिया और जीडीपी को माइनस में पहुंचा दिया।
इसी तरह, किसानों की जो मांग बरसों से थी, वह तो अब तक बनी है, लेकिन केंद्र सरकार ने कानून बना डाला जिसमें मंडियां खत्म हो जाएंगी. कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग आएगी. पूंजीपति सीधे किसानों से उत्पाद खरीदेंगे. नए कानून में कालाबाजारी पर से प्रतिबंध हटा लिया गया है, जिसका मतलब है कि पूंजीपतियों को कालाबाजारी करने और महंगाई बढ़ाकर जनता की जेब काटने का अधिकार भी मिल गया है।
बहुराष्ट्रीय कम्पनियां किसान से 10 रुपये की आलू खरीदेगी और स्टोर कर 50 या 100 रुपये में भी बेचेगी तो उस पर नियंत्रण का कोई कानून नहीं है। किसान का घाटा होगा तो उसकी जिम्मेदारी किसी की नहीं होगी. एमएसपी पर सरकार लिखित में कुछ देने को तैयार नहीं है। यानी जिस धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1800 रुपये तय है, वही धान यूपी में अधिकतम 1100 रुपये में बिक रहा है। और हम मजबूर होकर बेच रहे है। सरकार इस विसंगति को और बढ़ाना चाहती है। नये कानून के बाद पूंजीपति इस विसंगति को अपने हिसाब से नियंत्रित करेंगे।
सरकार चाहती है कि वह मेडिकल, शिक्षा, खेती, परिवहन, हर सेक्टर को पूंजीपतियों को बेच दे। पूंजीपति देश चलाएं और नेता खाली भाषण झाड़ें। लेकिन इसकी कीमत आम जनता और किसान चुकाएंगे. जो आंदोलन चल रहा है, वह सिर्फ किसानों का आंदोलन नहीं है। अगर आप लुटने को तैयार नहीं हैं तो यह आंदोलन आपका भी है।